हमें काम कोई दिखाना पड़ेगा।
सही धर्म को ही निभाना पड़ेगा।।
नहीं कल्पना से सधे काम कोई।
अकर्मण्य का है कहाँ नाम कोई।
करो कर्म ऐसा मिले लक्ष्य प्यारे।
न बैठो धरे हाथ में हाथ सारे।
हमें पाँव ऐसा उठाना पड़ेगा।
सही धर्म को ही निभाना पड़ेगा।।
लिए ज्योत्सना चाँद सा रूप पाना।
घनी रात में दीप आशा जलाना।
बनें श्रेष्ठ उम्मीद का पुंज आओ।
चलो हाथ थामे सुमार्गी कहाओ।
दुखों को जहाँ से भगाना पड़ेगा।
सही धर्म को ही निभाना पड़ेगा।।
दुखी दीन हैं जो उन्हें दें सहारे।
सदा डूबते को लगाएँ किनारे।
बनेंगे न स्वार्थी न लोभी कहाएँ।
करें त्याग “साँची” खुशी ही लुटाएँ।
सभी को सुधर्मी बनाना पड़ेगा।
सही धर्म को ही निभाना पड़ेगा।।
इन्द्राणी साहू “साँची”
भाटापारा (छत्तीसगढ़)
(यह इनकी मौलिक रचना है)
रचना की विधा- भुजंगप्रयात छंद
चार यगण- 122×4
मापनी- 122 122 122 122
दो-दो या चार चरण समतुकांत
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(आवरण चित्र- वैष्णवी तिवारी)