संस्कार बनाम सोशल संस्कार

Mind and Soul


मेरी इस लेख का शीर्षक पढ़कर कुछ लोग असमंजस में होंगे या इसे मजाक में टाल सकते हैं लेकिन यह शीर्षक मैंने क्यों दिया, इसके लिए मेरे अपने तर्क हैं, हो सकता है इससे आप सहमत हो या असहमत भी हो सकते हैं क्योंकि मुझे यह विषय चिंताजनक लगा। अतः मैंने इसे अपनी लेखनी के माध्यम से आप पाठकों तक पहुंचाने का प्रयास किया है, जिससे परिस्थितियों में कुछ बदलाव आ सके। हम जिस समाज में रहते हैं, वहां बच्चों में संस्कार पिरोना हम माता-पिता या अभिभावकों का उत्तरदायित्व है। जहां बच्चों में बड़ों के प्रति आदर ,सम्मान ,रिश्तों में मिठास,प्रेम ,सद्भाव अतिथि देवो भव: की परिकल्पना इत्यादि है ,लेकिन आज की सोशल मीडिया के संस्कार बच्चों के मस्तिष्क में क्या बो रहे हैं ? हम अभिभावक अपने बच्चों के सामने किस तरह के उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं ?
रील या शार्ट वीडियो एक चिंता का विषय है जो आज के समाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। जंगली घास की तरह उग रही, रील बनाने वालों की संख्या ,आज प्रत्येक 10 व्यक्ति में से 6 या 7 व्यक्ति रील बना रहा है तथा देखने वालों की संख्या भी कम नहीं है । मैं यह नहीं कहती कि कोई भी कला बेकार है, आप अपने शार्ट वीडियो के माध्यम से नृत्य ,गायन, वादन, पाक कला तथा अन्य रचनात्मक कार्यों को लोगों तक पहुंचाएं इसमें कोई बुराई नहीं है उस शॉर्ट वीडियो में कुछ सीखने योग्य बातें हों तो उत्तम है , लेकिन अश्लील हरकतें या अंग प्रदर्शन करते नृत्य,गाली-गलौज संबंधों का मजाक उड़ाना, जैसे पति-पत्नी, ननद-भाभी ,सास-बहू आदि के सुंदर संबंधों का मजाक बनाना या अतिथि बोझ होते हैं या बुआ चाचा दादी, बुरे होते हैं तथा मामा मौसी या नानी अच्छे होते हैं इस प्रकार की बातों को बच्चों के मस्तिष्क में भरना, यह किस प्रकार से आपके बच्चों का भला कर पाएगा , यह मेरी समझ से परे है, क्योंकि मेरी समझ से हर रिश्ता खूबसूरत होता है जो आपके व्यवहार कुशलता और रिश्तों में आपकी निष्ठा पर निर्भर करता है।
अंग्रेजी का एक शब्द आज कल प्रचलन में है जो यहां उल्लेखनीय है Toxic ( विषाक्त या जहरीला ) जो कि व्यवहार के संबंध में उपयोग हो रहा है, तो क्या आपको नहीं लगता कि हम खुद भी toxic हो रहें हैं और बच्चों को भी संबंधों के मामले में toxic बना रहे?
बच्चों के व्यवहार में और मस्तिष्क में हम किस प्रकार का बीजारोपण कर रहे हैं ? हम चाहते तो हैं कि हमारी संताने लव-कुश जैसी हों उनमें राम और भरत की तरह स्नेह हो। हमारी बेटियां किरण बेदी और बेटे अब्दुल कलाम जैसे हो लेकिन वास्तविकता में हम उनके सामने क्या परोस रहे हैं। हम चाहते हैं कि उन उनमें धैर्य बना रहे ।
वो किताबें लेकर बैठे हैं लेकिन उनमें धैर्य कहां से पनपेगा जो 30 सेकंड के वीडियो को भी पूरा नहीं देख पाते और अपनी उंगलियां मोबाइल पर फिरा देते हैं। वो किताबें लेकर क्यों और कैसे बैठे ? बच्चे तो वही सीखते हैं जो अपने माता-पिता और अभिभावक को करते हुए देखते हैं जब उन बच्चों के समक्ष ऐसे उदाहरण है कि सोशल मीडिया पर फलाने ने अपने वीडियो डालकर , गाड़ी या बंगला खरीदा तो फिर बच्चे पढ़ाई की तरफ अपना रुझान और ध्यान क्यों लगाएं । जब चंद नाच गाने या रील बनाकर अपनी जिंदगी आराम से गुजार सकते हैं ।
यह स्थिति भविष्य में और भी चिंताजनक हो सकती है, अगर हम अभिभावक समय रहते ना चेते । मैं यह नहीं कहती कि मोबाइल का उपयोग गलत है लेकिन यह हमारे आने वाली पीढ़ियों के बालमन पर बुरा प्रभाव डाल रहा है।यह भी सत्य है। अतः हम अभिभावकों का ही उत्तरदायित्व है कि हम अपने बच्चों का भविष्य संवारे। इसके लिए पहले तो हमें ही अपनी कथनी और करनी पर अमल करना होगा अर्थात अगर हम बच्चों को जिन बातों के लिए मना कर रहे हैं ,उसे हमें स्वयं भी मानना होगा। जैसे कि यह निर्धारित करें की फोन कितनी देर तक चला रहे हैं उसमें किस तरह के ऑडियो ,वीडियो या टेक्स्ट, फोटो देख सुन रहे हैं या उसमें क्या ज्ञानवर्धक है । जो स्वयं या हमारे बच्चों के विकास लिए सहायक सिद्ध हो रहा है। यदि ज्ञानवर्धन की दृष्टि से न देखकर मनोरंजन की दृष्टि से देख रहे हैं तो भी यह निश्चित करें कि वह ,फूहड़ता और अश्लीलता से कोसों दूर हो तभी यह संभव हो पाएगा। यदि आप सोच रहे हैं कि बच्चा एक ही दिन में फोन रखकर पुस्तक उठा ले या उसका व्यवहार तुरंत बदल जाएगा तो ऐसा नहीं है क्योंकि –
धीरे-धीरे रे मना ,धीरे सब कुछ होय ।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आवे फल होय।।

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