साधारण दिखने वाली असाधारण महिला की कहानी

Colours of Life

हर महिला का जीवन काफी चुनौतियों से भरा होता है, लेकिन उन चुनौतियों के बीच आखिरकार उसे ही यह तय करना होता है कि इस जीवन को किस रूप में आगे बढ़ाना है। आज मैं कहानी सुनाने वाली हूँ साधारण सी दिखने वाली असाधारण महिला सुधा वैद्य की, खुशमिजाज, सरल, सहज और मिलनसार सुधा वैद्य की, जो उन महिलाओं की प्रतीक हैं, जो त्याग और समर्पण में ही जीवन की सारी खुशियाँ ढूँढ लेती हैं।

सुधा वैद्य का जन्म वाराणसी के एक साधारण परिवार में हुआ। इनकी माताजी एक कुशल गृहणी तथा इनके पिताजी एक होम्योपैथिक डॉक्टर थे। पाँच बहनों तथा एक भाई में सबसे बड़ी सुधा वैद्य पढ़ने में काफी अच्छी थीं। इनके पिता जी काफी प्रगतिशील विचार रखते थे और पुत्रियों से  उनको विशेष लगाव था। शिक्षा के प्रति अपनी सकारात्मक सोच के कारण उन्होंने अपने सभी बच्चों को उच्च शिक्षा प्राप्त कराई, जिसके परिणामस्वरूप सुधा ने साल 1972 में अंग्रेजी विषय से परास्नातक किया और फिर एलटी कर एक प्राइवेट विद्यालय में शिक्षिका के पद पर कार्य शुरू किया।

फिर आयोग द्वारा चयनित होकर साल 1975 में राजकीय बालिका इंटर कॉलेज दिलदारनगर गाजीपुर में उन्हें पहली पोस्टिंग मिली। इससे उनके पिता का मनोबल और भी ऊँचा हो गया। इसके बाद उनके पिता ने अपनी पुत्री के लिए सुयोग्य वर की तलाश शुरू कर दी। इस काम में सुधा की योग्यता को भी देखना था। साधारण रहन-सहन के कारण ये कार्य लम्बे समय तक चलता रहा। ऐसे में सुधा ने अपने पिता की आर्थिक स्थिति को देखते हुए विवाह न करने का फैसला लिया। उसके बाद अपनी नौकरी में बार-बार स्थानान्तरण और योग्य होकर भी प्रमोशन न मिलने के कारण सुधा काफी परेशान भी रहीं।

इस बीच उनकी अन्य बहनों ने अपनी शिक्षा जारी रखी। पिता की वृद्धावस्था तथा आर्थिक स्थिति को देखते हुए उन्होंने अपनी बहनों के विवाह तथा शिक्षा की जिम्मेदारी भी अपने अनुज के सहयोग से पूरी की। फिर अपने भाई का भी विवाह संपन्न कराया। पिता के न रहने पर धीरे-धीरे उन्होंने कब एक पिता और अभिभावक का स्थान प्राप्त कर लिया, आज भी सोच कर उनकी आँखे नम हो जाती हैं।

सभी भाई बहन अपने परिवार में आज सकुशल जीवनयापन कर रहे हैं, यह बात आज सुधा वैद्य को आत्मसंतोष प्रदान करती है। हालांकि बातचीत के दौरान बहुत सी अनकही और अनछुई बातें ऐसी थीं, जो मेरी और उनकी आँखों की कोर गीली करती रहीं। फिर भी वह संयम और धैर्य के साथ बताती रहीं। इन्हीं सब जिम्मेदारियों के बीच उनकी माता जी भी अस्वस्थ रहने लगीं। सुधा वैद्य पर भी उम्र का असर होने लगा। लेकिन अपनी माता जी की सेवा में उन्होंने किसी प्रकार की कोई कमी नहीं रखी। अंततः साल 2023 में उनकी माता जी भी नहीं रहीं।

अब सुधा वैद्य का समय अपनी नियमित दिनचर्या के बाद प्रभु भजन कीर्तन इत्यादि में व्यतीत होता है। उनका जीवन एकाकी होकर भी एकाकी नहीं है। वह अपने आस पड़ोस को अपना परिवार कहती हैं और अच्छे-बुरे समय में एक मुखिया की भाँति अपने कर्तव्यों का निर्वहन करती हैं।

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर ऐसी तमाम महिलाओं का अभिनंदन, जिन्होंने त्याग और समर्पण को ही जीवन लक्ष्य बना लिया।

स्मृति

 

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