प्रेम

Mind and Soul

पता नहीं किसने कह दिया घुटनों के बल बैठकर गुलाब देने को प्रेम कहते हैं!

आज फलां डे कल फलां डे!
सचमुच का प्रेम तो वही कि जहाँ बातें ही ख़त्म न हों, वो जिससे बातें करते आप कभी न थकें, और कभी शब्द एक दूसरे से गुज़रते हुए आँखों में आकर तिरोहित हो जाएँ और फिर मौन संवाद भी इतना मुखर हो जाए कि आसपास के लोगों तक को वो केमिस्ट्री महसूस होने लगे।
जहाँ अबोला भी हो तो मन से मन तक बातें पहुँच रहीं हों। वो गुलाब दे न दे, ख़ुशियों की वो पोटली दे जिसे आप कभी किसी के सामने खोलना नहीं चाहते। आपकी अपनी निजी पोटली है प्रेम! घण्टों बातों करके भी अनभिव्यक्त एहसासों का पिटारा है प्रेम!
बूँद बूँद इकठ्ठा हुआ अनाम ,अवर्णनीय, अनगढ़ एहसास है प्रेम, जो समय के साथ परिष्कृत होकर दोनों के बीच सेतु हो जाता है। “स्नेह सेतु” जो कि लगता है बरसों से आपके बीच था, है और रहेगा।
प्रेम ऐसा मौसम है जिसमे पतझड़ ,सावन चाहे जितने आएँ स्थायी तो वसंत ही रहता है।

प्रेम , एक गुलाब के लिए घुटनों पर नहीं बिठाता, जीवन भर के लिए सर आँखों पर बिठाता है।

प्रज्ञा त्रिवेदी

आवरण चित्र साभार

प्रज्ञा त्रिवेदी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *