दृढ़ संकल्पित में नारी हूँ, अपने अधिकारों की अधिकारी हूँ।
प्रखर प्रगति की आस जगाए, धैर्यवान जग उपकारी हूँ।
नील गगन में उड़ चलूँ मैं, पंख पसार पंछी बन प्यारी।
आँखों में नव स्वप्न सजाकर, धवल छवि रख जीवन सारी।
मैं सारी सृष्टि में सबसे प्यारा, सबसे कोमल हूँ।
कुदृष्टि के नाश हेतु मैं शक्ति स्वरूप दिव्य अवतार हूँ।
माँ बेटी बहन भार्या स्वरूपा, कर्तव्य परायणा नारी हूँ।
अपने आदर्श मूल्यों से सुरभित, सभी रिश्तों में संस्कारी हूँ।
धर्म-कर्म के पग धारक बन, सत्य राह पथधारी हूँ।
मर्यादा से महिमा मंडित, सहज भाव की नारी हूँ।
अपनेपन का भाव सँजोए, सबके नेह दुलारी हूँ।
कोमल हृदय सुयोग्य सबला, अटल साहसी नारी हूँ।
डा मनोरमा चन्द्रा ‘रमा’।
रायपुर (छत्तीसगढ़)