सबसे बड़ा हथियार

Mind and Soul

हथियार शब्द ही अपने आप में उतना ताकतवर है जितना कि उसका अर्थ। क्योंकि अगर दो व्यक्ति आपस में लड़ रहे हों और एक अचानक बोल दे कि दूर रहो मुझसे, वरना सोच लो, मेरे पास ‘हथियार’ है। इतना सुनते ही दूसरा व्यक्ति अचानक शान्त और थोड़ा डरा हुआ सा लगने लगता है। धीरे-धीरे उसका व्यवहार भी नरमी की ओर बढ़ने लगता है।
इस बात से आप समझ गये होंगे कि हथियार शब्द कितना शक्तिशाली है। लेकिन अगर कभी आप से पूछा जाये कि सबसे शक्तिशाली, ताकतवर या सबसे बड़ा हथियार कौन सा है, तो आप क्या नाम लेंगे? आप क्या कहेंगे?
मेरे खयाल से तो आपके दिमाग में बारी-बारी से सभी प्रकार के अस्त्रों-शस्त्रों के नाम आने लगेंगे या यूँ कहें तो अभी से आने लगे होंगे।
मनुष्य तो मनुष्य देवता भी हथियार रखते हैं या सच कहें तो इनकी शुरुआत ही देव लोक से हुई है, क्योंकि जब-जब किसी देव ने या देवी ने कोई अवतार लिया है, तो वह किसी न किसी अस्त्र या शस्त्र के साथ ही अवतरित हुए हैं। जिनके पास ये अस्त्र-शस्त्र नहीं होते थे, उन्हें अन्य देवता ये चीजें प्रदान कर देते थे।
ये तो बातें हुईं देवी-देवताओं की। इसी तरह मानव जीवन की बात करें तो हर वह आम इन्सान जो स्वयं को ताकतवर बनाना चाहता है, वह विभिन्न प्रकार के हथियार रखता है और कभी-कभार उनका इस्तेमाल भी कर लेता है। मानवों में भी स्त्री-पुरुष अलग-अलग हैं, तो इनकी विशेषताएँ भी अलग-अलग ही होती हैं।
सोचिए, क्या हुआ होगा जब शक्तियों का बँटवारा किया गया होगा, मानव जीवन को व्यवस्थित करने की प्रक्रिया में। सोचा है कभी, कितनी मुश्किल हुई होगी ईश्वर को, कैसे किया होगा उन्होंने शक्तियों का बँटवारा? किसे बनाया होगा उन्होंने अधिक शक्तिशाली, स्त्री को या पुरुष को? मुझे अनायास ही ऐसा विचार आया कि कुछ इस प्रकार हुआ होगा-
ब्रह्मा जी ने कहा कि सभी लोगों को थोड़ी देर में मेरी सभा में उपस्थित होना है। वहीं वितरण का कार्य होगा। तब तक सभी पुरुष गये आराम करने, स्त्रियों ने सोचा वहाँ सभा में बहुत सारे लोग उपस्थित होंगे, क्यों न जाने से पूर्व थोड़ा सज-सँवर लिया जाये। फिर क्या था।
वह थी नारी करने लगी सभा में जाने की तैयारी।
उसने सोचा क्या हुआ जो पुरुष पहले पहुँच जायें, अवश्य बारी आयेगी हमारी।
फिर क्या था यूँ ही लगातार चलती रही उनकी जाने की तैयारी।
दूसरी ओर ब्रह्मा जी ने वितरण आरंभ कर दिया। वहाँ पुरुष पहले पहुँच चुके थे। दूर-दूर तक केवल वही दिख रहे थे। ब्रह्मा जी वितरण करते रहे। आखिर वह भी क्या करते, जो वहाँ उपस्थित थे, उन्हें मिलता रहा, शारीरिक बल, क्रोधाधिक्य, स्वतंत्रता, स्वच्छंदता, वैचारिक गूढ़ता, अहम कार्यों को करने की क्षमता, जगह-जगह सभा करना, चौराहे पर घूमना, शासन, सत्ता, यहाँ तक कि आर्थिक ताकत भी पुरुषों के खाते में चली गयी। जब सभा समाप्ति के बाद पुरुष लौटने लगे, तो यह समाचार महिलाओं तक पहुँची। बेचारी दौड़ती, भागती, हाँफती हुई भगवान को पुकारती हुई सभा में पहुँचीं। वहाँ ब्रह्मा जी ने कहा हे देवियों, आपने आने में देर कर दी। यहाँ तो सभा समाप्त हो चुकी है। मेरे पास जितनी भी प्रकार की कलाएँ थीं, मैंने वह सब पुरुषों में बाँट दीं क्योंकि आप में से कोई भी यहाँ उपस्थित नहीं था। अब मैं कुछ नहीं कर सकता। इस पर सभी स्त्रियाँ दुखी हो गयीं। बार-बार ईश्वर से प्रार्थना करने लगीं कि हे प्रभु ऐसा अन्याय न करें। यदि सभी शक्तियाँ पुरुष को मिल गयीं तो हमारा क्या होगा। हमें बनाया ही क्यों, जब हमारा कोई औचित्य ही नहीं।
इस तरह की अनेक याचनाएँ करने पर ब्रह्मा जी ने सोचा कि कुछ तो करना पड़ेगा। ब्रह्मा जी बोले, ठीक है, मैं आपको उस सर्वशक्तिमान और बलशाली पुरुष की माता बना देता हूँ। इस प्रकार पुरुष को इस संसार में लाने यानि जन्म देने का अधिकार केवल आपका होगा, जिससे वह आपकी सभी इच्छाओं का मान करेगा और आप सदा उससे बड़ी होंगी।
पहले तो सभी स्त्रियाँ बहुत खुश हो गयीं, किन्तु कुछ विचार के बाद बोलीं- प्रभु यह तो ठीक है लेकिन ऐसा तो केवल तब तक होगा जब तक वह शिशु रूप में होगा या बाल्यावस्था तक। उसके पश्चात् आप द्वारी दी गयी शक्तियों के अनुसार जब वह बड़ा होगा तो एक नहीं सुनेगा।
ब्रह्मा जी ने विचार किया कि इनका कहना सच है। और इतनी देर इन लोगों ने सजने-सँवरने में लगा दी, तो सब गड़बड़ हो गयी, परंतु सुंदर दिख रही हैं। ब्रह्मा जी को उपाय सूझा। वह बोले- चलो आप सभी को एक और ताकत देता हूँ, सुंदरता। जिस पर आपने इतना समय लगाया है, वह भी आपकी ताकतों में शुमार होगा। पुरुष चाहे कितना भी बुद्धिमान हो, गुस्से वाला हो, शारीरिक रूप से बलवान हो या आर्थिक रूप से सम्पन्न हो, जब वह किसी सुंदर स्त्री को देखेगा, तो उसका दिलोदिमाग उसकी तरफ आकर्षित होगा। सब कुछ भूल कर वह उस स्त्री के प्रेम के वशीभूत हो जायेगा। सर्वगुणसम्पन्न हो कर भी वह उसके गुणगान में लगा रहेगा।
फिर तो स्त्रियों की प्रसन्नता की सीमा ही नहीं रही। उन्होंने सोचा, चलो इतना सजना-सँवरना भी व्यर्थ नहीं गया। यह तो अपने आप में बहुत बड़ा हथियार होगा। लेकिन एक समस्या फिर अटक गयी। यह हथियार तभी तक चलेगा जब तक स्त्रियाँ सुंदर होंगी या मानव युवावस्था में होगा। जब वृद्धावस्था आयेगी, तब तो हमारी कोई नहीं सुनेगा। हम किसी प्रकार उन्हें मना नहीं सकेंगे।
इतना कहते-कहते सभी की आँखों में आँसू आ गये, जिसे देख कर ब्रह्मा जी धीरे-धीरे भावुक होने लगे। स्त्रियाँ अपनी बात कहते-कहते रोने लगीं। अब ब्रह्मा जी से रहा न गया, तो उन्होंने हाथ जोड़ लिया और बोले- देवियों, आप सभी के समक्ष तो मैं स्वयं हार गया, अब किसी अन्य पुरुष की क्या मजाल, जो आप सभी से जीत सके। आप सभी को मैं अभी से वरदान देता हूँ कि आपके ये आँसू ही आपके लिए हथियार सिद्ध होंगे। पुरुष चाहे बच्चा हो, युवक हो या वृद्ध, जिस भी रूप में होगा, किसी प्रकार यदि आप से न सँभले या आपको लगे कि अब आपकी एक न सुनेगा, तो वहाँ आपके ये आँसू काम आयेंगे।
इन आँसुओं को देखते ही पुरुष के हृदय और मस्तिष्क उसके वश में नहीं रहेंगे, वह विवेक खो बैठेगा और वही करेगा जो आप कहेंगी। किसी प्रकार से भी परंतु आपकी बातों को वह मान लेगा।
फिर क्या था। सभी स्त्रियाँ खुश हो कर वापस लौटीं और तभी से इस महा अस्त्र का प्रयोग तरह-तरह की अपनी इच्छाओं और कामनाओं की पूर्ति के प्रयोग में करने लगीं।
तभी से स्त्रियों के आँसुओं को ब्रह्मास्त्र के रूप में जाना जाता है, अर्थात् ब्रह्मा का अस्त्र। इस संसार में दो ब्रह्मास्त्र हैं, एक स्वयं ब्रह्मा जी के पास और दूसरा स्त्रियों के पास उनके आँसू।
मेरी समझ से तो अब तक इससे बड़ा कोई हथियार न बना है, न ही कभी बनेगा।
आप क्या सोचते हैं?

शुभ्रा तिवारी

 

(आवरण चित्र- सत्यम द्विवेदी)

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