बेटियाँ दिल के करीब रहती हैं।
सुख दु:ख में शरीक रहती हैं।
माँ की मूरत में ये ही ढलती हैं।
ममता की सूरतों में पलती हैं।
प्रसव की पीड़ा जो माँ ने सही
वही यह धरती लिये चलती हैं।
बीज को कोख में लहू देतीं
फिर लगा छातियों से रहती हैं।
कभी किसी से न कोई मोल करें
ममता की छाँव यूँ ही ढलती हैं।
एक ही कोख से जने दोनों
बेटियाँ दर्द सब समझती हैं।
ज्योति नारायण
हैदराबाद (तेलंगाना)
(यह इनकी मौलिक रचना है)
(आवरण चित्र- सत्यम द्विवेदी)