आया त्यौहार
भर गई उमंग
प्रकृति ने किया श्रृंगार
महकने लगी दिशाएँ
फिर भी …
इंतज़ार है उस महक का
जो महका दे मनुष्य को
सदा-सदा के लिए …
आ गए सब .. सज गए रिश्ते
घर की गोद भर गई
स्वाद घुलने लगे
गुजिया, पपड़िया के
खनकने लगी हँसी .
फिर भी ..
इंतज़ार है ऐसे अपनों का
जो कभी पराए नहीं होते ……
चमक गया मंदिर
बज उठा शंख
चौक पूरे, आसन बिछाया
देवता बिराजे
गूँजे प्रार्थना के स्वर …
फिर भी ..
इंतज़ार है उन प्रार्थनाओं का
जो कभी अस्वीकार न हो …
रोशनी का आह्वान
जल उठे दीप
जगमग हुआ धरा का आँचल
फिर भी …
इंतज़ार है उस दीप का
जो मिटा दे सदा के लिए अंधकार।
इंतज़ार है..
जब ..सब एक जान हो
सब एक प्राण तत्व
सब को मिले जीवन सत्व
सबकी दुआ हो कुबूल
लिंग, धर्म, जाति को भूल
द्वैत, अद्वैत के परे
मनुष्य बना रहे …सिर्फ मनुष्य …..।
दीपावली की शुभकामनाओं सहित यथायोग्य अभिवादन
मधु सक्सेना
रायपुर (छत्तीसगढ़)
(यह इनकी मौलिक रचना है)