नीलिमा मिश्रा की रचना- रीत

कैसी “रीत” है दुनिया की, कि संग संग रहते हुये भी, मिलते नहीं कभी नदिया, झील और सागर के दोनों किनारे, चाँद और सूरज की , युगल जोड़ी है संग संग, फिर भी इनका मिलन है दुश्वारे, राधा कृष्ण एक होते हुये भी, ना मिल पाये कभी , जगत रीत के मारे, राम और सिया […]

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प्रेम

क्यूँ झुकता है आसमां, बाँहों में समेटने धरती को, हाँ ये प्रेम ही तो है। क्यूँ गुनगुनाते हैं भौंरे, चूमने फूलों को हाँ ये प्रेम ही तो है। क्यूँ दौड़ती है नदी, सागर में समाने, हाँ ये प्रेम ही तो है। क्यूँ बादल बरसते हैं, पर्वतों पर, हाँ ये प्रेम ही तो है। क्यूँ आँख […]

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हरे पत्तों के गिरने का कोई मौसम नहीं होता

मिले होते जो राहों में, तो कोई गम नहीं होता जुस्तजू हो गयी होती ये दिल पुरनम नहीं होता लुटे हम प्यार की खातिर, मगर कुछ भी नहीं हासिल वफ़ा करते वफ़ा से वो, तो दिल में खम नहीं होता सितारे जगमगाते हैं, मगर रोशन कहाँ होते जलाते दीप देहरी पे, तो वो मातम नहीं […]

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तुम्हें मुझसे प्रेम नहीं है

कैसे मान लूँ मैं, जो तुम कहते हो कि प्रेम नहीं है। मेरा नाम आते ही तुम्हारे होंठों पर मुस्कान का तैर जाना, गैरों की बातों में भी जिक्र मेरा करते हो प्रमाण है इस बात का, और तुम कहते हो कि प्रेम नहीं है। तस्वीर मेरी देखते हो दिन में सौ दफा, यादों को […]

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कंटकों में भी तुम्हारी प्रीत का मधुमास है

मुक्त सारे बंधनों से आज ये आकाश है मिट गये किन्तु परंतु,दृढ़ हुआ विश्वास है चाँद की शीतल निशा में ख्वाब पोसे जायेंगे भोर की शुभ अरुणिमा में आपका आभास है मिट गये किन्तु परंतु, दृढ़ हुआ विश्वास है देह से वैराग्य तक तुमको सदा धारण किया कंटकों में भी तुम्हारी प्रीत का मधुमास है […]

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मीरा के साथ साथ में रसखान खो गया

नफ़रत की आँधियों में यूँ इंसान खो गया। दैरो-हरम के बीच में ईमान खो गया। छूने के हौसले तो थे आकाश को मगर, नाकामियों के साथ ये अरमान खो गया। तहज़ीब की ज़मीं पे मुहब्बत भी खो गई, मीरा के साथ साथ में रसखान खो गया। इनआम में मिली हैं ये तनहाइयाँ फ़क़त, दिल बेवफ़ा […]

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