कैसे मान लूँ मैं,
जो तुम कहते हो कि प्रेम नहीं है।
मेरा नाम आते ही
तुम्हारे होंठों पर मुस्कान का तैर जाना,
गैरों की बातों में भी
जिक्र मेरा करते हो
प्रमाण है इस बात का,
और तुम कहते हो कि प्रेम नहीं है।
तस्वीर मेरी देखते हो
दिन में सौ दफा,
यादों को दिल में रखते हो
जागीर की तरह,
फिर भी कहते हो कि प्रेम नहीं है ।
चाँद को देखते हो
शक्ल मेरी मान कर,
हवाओं में एहसास
मेरी साँसों का है,
बार-बार कहते हो कि प्रेम नहीं है।
हर कोशिश बेकार है
मुझे भूल जाने की,
क्योंकि राधा बना दिया है मुझे
तुम कृष्ण मेरे हो
क्या अब भी कहोगे कि प्रेम नहीं है।
शुभ्रा तिवारी
गाजीपुर (उत्तर प्रदेश)
(यह इनकी मौलिक रचना है)