नफ़रत की आँधियों में यूँ इंसान खो गया।
दैरो-हरम के बीच में ईमान खो गया।
छूने के हौसले तो थे आकाश को मगर,
नाकामियों के साथ ये अरमान खो गया।
तहज़ीब की ज़मीं पे मुहब्बत भी खो गई,
मीरा के साथ साथ में रसखान खो गया।
इनआम में मिली हैं ये तनहाइयाँ फ़क़त,
दिल बेवफ़ा के प्यार में नादान खो गया।
छोड़ी हया ग़ज़ल ने मुहब्बत की बज़्म में,
शायर था दिलजला कोई पहचान खो गया।
साहिल पे आ गया है वो किश्ती को छोड़ के,
ज़ज़्बे-वफ़ा का देख लो तूफ़ान खो गया।
खाई जो ठोकरें तो उसे इल्म ये हुआ,
बचपन की मस्तियों का वो सामान खो गया।
हैरतज़दा थी ‘आन’ निगाहें सवाल पर,
लिक्खा था खूने दिल से वो उनवान खो गया।
आशा सोनी ‘आन’
(कोटा, राजस्थान)
(यह इनकी मौलिक रचना है)
(आवरण चित्र- श्वेता श्रीवास्तव)