कहते हैं जहाँ चाह हो, वहाँ राह निकल ही आती है। हिन्दी के प्रचार में लगी अनुपमा त्रिपाठी की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। अनुपमा चाहतीं, तो वह अपने घर के करीब रह कर भी हिन्दी अध्यापन का काम कर सकती थीं, लेकिन इनकी सोच अलग थी। अनुपमा ने अपने इस काम के लिए सुदूर दक्षिणी राज्य तमिलनाडु को चुना है। उत्तर प्रदेश के छोटे से गाँव की अनुपमा बचपन में जब ककहरा सीख रही थीं, तो किसने सोचा था कि वह इसी ककहरे को सिखाने अपने घर से हजारों किलोमीटर दूर पहुँच जायेंगी।
दक्षिण भारत के तमिलनाडु में हिन्दी प्रचार-प्रसार में लगी हुई अनुपमा मूलतः उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले के थरौली गाँव की हैं। लेकिन पिछले 12 सालों से वह तमिलनाडु के चेन्नई में वेलम्माल नेक्सस ग्रुप ऑफ स्कूल्स के तहत वेलम्माल विद्यालय में हिन्दी के विषय विशेषज्ञ के तौर पर सेवारत हैं। इसके अधीन वह फिलहाल दस विद्यालयों में विषय विशेषज्ञ के रूप में कार्य कर रही हैं, जिनमें काम करने वाले 50 विषय अध्यापक हिन्दी भाषा को आगे बढ़ाने हेतु कार्यरत हैं। शत-प्रतिशत परीक्षा परिणाम के लिए पिछले लगातार आठ वर्षों में आठ बार उनको वेलम्माल नेक्सस ग्रुप ऑफ स्कूल्स की ओर से स्वर्ण मुद्रा से सम्मानित किया जा चुका है। इसके अलावा, 11 जुलाई 2015 को भारत सरकार की तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी की ओर से भी उन्हें इस कार्य के लिए प्रशंसा पत्र मिल चुका है। साथ ही वह स्वामी विवेकानंद ट्रेनिंग ऐंड एजुकेशन अकादमी चेन्नई की ओर से सर्वश्रेष्ठ शिक्षिका का पुरस्कार प्राप्त कर चुकी हैं। (लेडीज न्यूज टीम, 26 जून 2021)