तुम आओ बसंत

Colours of Life

तुम आओ बसंत

हिम से ठिठुरी,

पतझड़ से उजड़ी ,

शाखों पर तुम,

लौट आओ बसंत।

 

बंजर हुये खेतों मे,

शुष्क हुये मेढ़ों में

सूनी पड़ी अमराई में

मंजरियों मे बगराओ बसंत।

 

रंगहीन हो रही धरा,

व्याकुल हो रहा टिटहरा,

बासंती चूनर ओढ़,

सरसों फूलों पर छाओ बसंत।

 

सूनी उदास आँखें

शिथिल हुई पाँखें,

उन पँखो को तुम,

परवाज़ दे जाओ बसंत।

 

धुसरित हुई गलियाँ,

मुरझा गई कलियाँ,

इस बेजान मौसम को,

फागुनी रंग दे जाओ बसंत।

 

अबके जो आओ,

लौटकर ना जाओ,

नित नित नव उमंग,

तुम मनाओ बसंत।।

 

नीलिमा मिश्रा

आवरण चित्र

(वैष्णवी तिवारी)

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