सुप्त धड़कन, क्षीण तन मन वेदना से कसमसाये
है नहीं आनंद किंचित रात बीती, धैर्य जाये
भावना का ज्वार फूटे, गीत बन के बह चले
भोर में चन्दा चला है सूर्य से मिल के गले
इस घड़ी,उनको बुला दो हिय यही संगीत गाये
सुप्त धड़कन, क्षीण तन मन वेदना से कसमसाये
लाज से आरक्त मुख पे केश कारे बावरे
ओढ़ के चूनर सलोनी आ रही हूँ सांवरे
देह को कंचन बना दो, चित्त भी आराम पाये
सुप्त धड़कन, क्षीण तन मन वेदना से कसमसाये
रोष है अंतःकरण में, क्षुब्धता का भार है
त्रास से जलते क्षणों में अश्रुओं की धार है
दीप मेरी आरती का व्यग्रता से झिलमिलाये
सुप्त धड़कन, क्षीण तनमन वेदना से कसमसाये
है नहीं आनंद किंचित रात बीती, धैर्य जाये।।
प्रीति त्रिपाठी
नई दिल्ली
(यह इनकी मौलिक रचना है)
(आवरण चित्र- वैष्णवी तिवारी)