महँगाई पर लिखने वाला क्या सच में निर्धन होता है

क्या करुणा को गाने वाले जीवन में व्याकुल होते हैं? क्या हास्य विधा के महारथी हँसते ही जगते सोते हैं? क्या ओज विधा के लेखक बंदूकें लेकर घर जाते हैं? क्या राणा को गाने वाले चेतक को सैर कराते हैं? महँगाई पर लिखने वाला क्या सच में निर्धन होता है? जो बात चिरागों की करता […]

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है नहीं आनंद किंचित रात बीती, धैर्य जाये

सुप्त धड़कन, क्षीण तन मन वेदना से कसमसाये है नहीं आनंद किंचित रात बीती, धैर्य जाये भावना का ज्वार फूटे, गीत बन के बह चले भोर में चन्दा चला है सूर्य से मिल के गले इस घड़ी,उनको बुला दो हिय यही संगीत गाये सुप्त धड़कन, क्षीण तन मन वेदना से कसमसाये लाज से आरक्त मुख […]

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इक जुगनू भेजा था हमने आसमान में

सूनापन, तन्हाई और डर देखा हमने माँ के बाद सिसकता वो घर देखा हमने जैसे पत्थर में भी हमने रब देखा है वैसे इंसां में भी पत्थर देखा हमने इक जुगनू भेजा था हमने आसमान में मगर सितारा उसे समझकर देखा हमने गर दो चंदा होते तो फिर कैसा लगता छत पर उनको आज बुलाकर […]

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दीवार

अपने कंधों पर ले कर घूमती ना जाने कितने घर, मंदिर, कुटी और मीनार, दीवार। नींव में बरसों-तलक दब कर भी कभी उफ़ नहीं करती दीवार। लोग कहते हैं दीवारों के भी कान होते हैं पर कभी किसी से कुछ नहीं कहती दीवार। अपनी सख़्त बाँहों के घेरे में बचाये रखती हमारे परिवार को लोगों […]

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