प्रेम तपस्या

Mind and Soul

प्रेम सधे सुर प्रीतम तेरे, कर आराधन साधा तुमने ।

प्रेम तपस्या मुश्किल सब से , जीती है हर बाधा तुमने।।

नाम मिटाना मैं का पड़ता, पल-पल साथ निभाया तुमने।
अहम छोड़ मैं-मैं का तुम ने, मैं-तू एक बनाया तुमने।।

कोरा कागज हिय का आंगन, चित्र प्रेम का खींचा तुमने ।
मुस्कानों के मृदु झरने से, मन बगिया को सींचा तुमने।।

झंकृत कर दे जो सांसों को, ऐसे साज बजाए तुमने।
मेरी सांसो की वीणा पर, सुंदर गीत सजाए तुमने।।

दिया गगन तुमने उड़ने को, साहस की दी पाँखें तुमने।
आशाओं के शुभ सपनों से, भर दी मेरी आंँखें तुमने।।

बेरंगी मेरे जीवन को, इंद्रधनुष सा रंगा तुमने।।
मरु-भू सा था यह तन मेरा, मीत बहा दी गंगा तुमने।।

प्रेम एक है रूप अनेकों, जैसा मन में जाना तुमने।
पिता-पुत्र या मांँ बेटी हो, पति-पत्नी जो माना तुमने।।

हर्षलता दुधोड़िया।

(हैदराबाद)

आवरण चित्र।

(वैष्णवी तिवारी)

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