देह के सौजन्य से विरहिन सरीखा रूप पाऊँ
रात्रि की निस्तब्धता में, चाँदनी के द्वार जाऊँ सूर्य के मनुहार में फिर से प्रभाती राग गाऊँ शून्य की मानिंद, जीवन फिर उसी से हार के धमनियों में क्षोभ बहता, चक्षु सावन वारते देह के सौजन्य से विरहिन सरीखा रूप पाऊँ सूर्य के मनुहार में फिर से प्रभाती राग गाऊँ गीत लिखने की तपस्या, फिर […]
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