हर दिन हम कुछ नया सीखते हैं, वो अलग बात है कि कई बार हमारा ध्यान उस तरफ नहीं जाता। हर घटना-परिघटना से हम सीखते अवश्य हैं और इस सीखने की शुरुआत बचपन से ही हो जाती है। खेल-खेल में न जाने कितनी सारी बातें, कितने करतब, कितना ज्ञान हमारे अंदर समाहित हो जाता है, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। मुश्किल वक्त में जब यह ज्ञान हमारी क्षमताओं के रूप में बाहर प्रदर्शित होने लगता है, तब हमें इन विशेषताओं का पता चलता है।
जब हम छोटे हुआ करते थे, तब हमारे पास बाजार के खिलौने ज्यादा नहीं हुआ करते थे, पुराने कपड़ों के गुड्डे-गुडिया बनाते, आसपास कहीं लकड़ी का काम चलता तो बढ़ई से लकड़ी के गुंड-गगरी बनवा लेते, कबड्डी, खो-खो, गिल्ली-डंडा, रस्सी-कूद और घर के अंदर ही खेलना हो तो खेलते थे चंगे-अष्टे।
चंगे-अष्टे से याद आया, आज कल लॉकडाउन की वजह से बच्चे बाहर खेलने नहीं जा पा रहे हैं, तो मैं उन्हें चंगे-अष्टे खेलना सिखा रही हूँ। पहले तो बच्चों ने बेमन से खेलना शुरू किया, लेकिन अब रुचि लेने लगे हैं। जब वे हारने लगते हैं, तब खीझ जाते हैं, खेल अधूरा छोड़ कर उठ जाते हैं।
तब मैंने उन्हें समझाया कि यह खेल हमें क्या-क्या सिखाता है, बुद्धि का इस्तेमाल करना, ध्यान एकाग्र करना, चौकन्ना रहना, विषम परिस्थितियों में धैर्य बनाये रखना, अपना बचाव करना और बचाव के साथ आक्रमण करना। पूरे खेल में शांत मन और संयम से काम लेना होता है, क्योंकि पासा कभी भी पलट सकता है।
वक्त बीतने के साथ अब बच्चे पूरी लगन से समझदारी से और चतुराई के साथ खेलने लगे हैं। लेकिन ये सब चीजें किसी किताब में सीखने को नहीं मिलेंगी, जो खेल-खेल में सीखने को मिल रही हैं। वैसे ही वर्तमान परिस्थिति में भी हम संयम और धैर्य बनाये रखें, तो बाजी जरूर पलटेगी और हम जीतेंगे भी।
सुषमा सिंह ‘कुंवर’
भोपाल (मध्य प्रदेश)
(यह इनकी मौलिक रचना है)
(आवरण चित्र- सत्यम द्विवेदी)