मैं करवा चौथ व्रत के अगले दिन अपनी बेटी के साथ अस्सी घाट घूमने गयी। वहाँ हमने बहुत सारा समय बिताया। वहीं हमारी मुलाकात मिस्टर पीटर से हुई जो हमारे साथ चित्र में दिख रहे हैं। मिस्टर पीटर अमेरिका के निवासी हैं। अचानक ही हमारे सामने आ गये और भारतीय परंपरा अनुसार हाथ जोड़कर हमें नमस्ते किया, हमने भी प्रत्युत्तर में उनका अभिवादन किया। उसके बाद हिन्दी भाषा के उनके ज्ञान ने तो हमें आश्चर्यचकित कर दिया। उन्होंने बताया कि वह नवंबर 2019 से ही लगातार यहाँ पर हैं, कोरोना के कारण घर नहीं जा पाये। वह एक अनुवादक के रूप में यहाँ कार्य कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि रामायण, महाभारत, अष्टाध्यायी,अभिज्ञानशाकुंतलम्, कुमारसंभवम् जैसी पुस्तकों का अध्ययन व अनुवाद उन्होंने किया है, जिसमें उनकी पसंदीदा पुस्तक कुमारसंभवम् है। मैं इन बातों का उल्लेख इसलिए कर रही हूँ कि आज हम लोग पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित ही नहीं, कुप्रभावित भी हो रहे हैं, उसी पश्चिमी सभ्यता के लोग हमारे धर्म ग्रंथों का अध्ययन कर रहे हैं। जिस देश की बुराइयाँ गिनाते हम नहीं थकते, वे उस देश को अपनाना चाहते हैं। संस्कृत के नाम पर हम मुँह बिचकाते हैं और अंग्रेजी बोलने में अपनी शान समझते हैं, वही वे लोग संस्कृत पढ़कर स्वयं को धन्य महसूस कर रहे हैं।
खैर इस तरह हमारी बातों का सिलसिला देर तक चला, क्योंकि उनकी हिन्दी भाषा पर इतनी अच्छी जानकारी थी कि बातों का क्रम बढ़ता चला गया। राजनीति, धर्म, ज्ञान, परंपरा, रीति-रिवाज जैसे अनेक विषयों पर उन्होंने बातें की। उसके बाद उन्होंने करवा चौथ व्रत के बारे में पूछा। फिर मैंने उन्हें बताया कि पति की लंबी आयु और अच्छे जीवन की कामना लेकर पत्नी ये व्रत अपने पति के लिए करती है। फिर कुछ देर बाद उन्हें तीज और जिउतिया व्रत भी याद आया तो मैंने उसके बारे में भी बताया कि यह सारे व्रत पति और पुत्र के दीर्घायु व सकुशल जीवन यापन के लिए हैं। फिर वही यक्ष प्रश्न उनके मन में भी आया जो हर (भारतीय) लड़की के मन में आता है कि सिर्फ पुरुषों के लिए ही व्रत क्यों? हमारे लिए क्यों नहीं?
मैं इस प्रश्न से चकित नहीं हुई, क्योंकि बचपन में मेरे मन में भी यह प्रश्न बार-बार आता था। इस प्रश्न का उत्तर उस समय (बचपन में) नहीं मिला। जैसे-जैसे बड़ी होती गयी, उत्तर ढूँढने की जिज्ञासा भी धीरे-धीरे समाप्त होती गयी। फिर भी मैंने उस प्रश्न का उत्तर उन्हें वहीं दिया, जो मेरे मन की जिज्ञासा को दिलासा देते थे- स्त्री तो स्वयं देवी स्वरूपा है, अभी-अभी हमने नवरात्रि का त्यौहार मनाया है जिसमें देवी के नौ रूपों की पूजा की है। उन नौ रूपों में स्त्री स्वयं ही गतिमान है, ऊर्जावान है। स्त्री तो स्वयं सृष्टि के सृजन में सहायिका है। देवी का आठवाँ रूप महागौरी का है जो सौंदर्य से भरपूर हैं, प्रकाशमान हैं, वह तो स्वयं दैदीप्यमान हैं, शांत हैं, वह स्वयं ही आशीर्वाद हैं, जो सबकी मनोकामनाओं को पूर्ण करती हैं, तो उस देवी स्वरूपा स्त्री के लिए व्रत की क्या आवश्यकता?
स्मृति
वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
(यह इनकी मौलिक रचना है)