क्या सुना है, अपनी सास को
खुश कर पायी है कोई बहू
आखिर इतनी लड़कियाँ देख कर
घर में लायी एक बहू।
अब इसमें इतनी कमियाँ
आखिर कहूँ तो किससे कहूँ
मेरी बेटी इतनी गुणी है
है इतनी कामकाजी
पर बिल्कुल ही कामचोर
निकली है मेरी बहू।
बिना कोई सिंगार करे ही
सोनी दिखती मेरी बेटी
लेकिन सोलह श्रृंगार भी
करके लगे ना भालो बहू।
फोन सटा के कान में घूमे
जब भी बनावे खाना
झाड़ू-पोछा करने के ही
बाद उसे है नहाना।
बेटी मेरी साफ सफाई
करके तुरंत नहाती
बातें करते-करते मुझसे
खाना भी है पकाती।
ये जाने क्या पढ़ लिख आयी
जॉब लगी ना अब तक
इतनी पढ़ लिख मेरी बेटी
जब से गयी ससुराल
सास-ससुर की सेवा देखो
कर ही रही है अब तक।
रंग दिया है इसने तो
उसको भी अपने रंग में
जब से हुई है शादी इसकी
मेरे बेटे के संग में।
घर में जब भी घटे हैं चीजें
हो जाती तैयार
फटफटिया पर बैठ के पीछे
चल देती बाजार।
मेरी रानी बिटिया को तो
जमाई खूब दुलारे
करनी हो घर की शॉपिंग या
मन को हो बहलाना
संग बिठाते गाड़ी पर
तुरंत ही लेकर जाते
खूब कराते सैर-सपाटा
माल भी साथ घुमाते।
इसको पढ़ कर आप बतायें
मैं जो कुछ भी गलत कहूँ
जब भी देखो एक नजर से
बेटी हो या बहू।
क्योंकि आपकी बेटी भी है
किसी के घर की बहू।
शुभ्रा तिवारी
गाजीपुर (उत्तर प्रदेश)
(यह इनकी मौलिक रचना है)
(आवरण चित्र- सत्यम द्विवेदी)