बिहार एक ऐसा राज्य है जो अक्सर राजनीतिक हलचलों के कारण टेलीविजन तथा समाचार पत्रों में अपनी जगह बनाए रखता है। अगर हम किसी से भी बिहार के बारे में पूछें, तो वह सबसे पहले वहाँ के बारे में नकारात्मक बातें ही बताएगा। दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों में तो बिहार और बिहारी नाम सुनते ही व्यंग्यात्मक मुस्कान उनके चेहरे पर छा जाती है। वहाँ तो उत्तर प्रदेश वालों को भी बिहारी नाम से संबोधित किया जाता है, लेकिन इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता कि प्रतियोगी परीक्षाओं में यूपी-बिहार वालों के आगे कोई नहीं टिक सकता, वहाँ तो इनका ही दबदबा है।
खैर, बिहार किसी भी क्षेत्र में पहचान का मोहताज नहीं है। स्वतंत्रता संग्राम की बात करें तो वीर कुँवर सिंह, अनुग्रह नारायण सिंह, डॉ राजेंद्र प्रसाद, स्वामी सहजानंद सरस्वती, ठाकुर युगल किशोर सिंह, कर्पूरी ठाकुर ऐसे अनेकों नाम हैं जिन्होंने बिहार राज्य के मुकुट में अपने नाम के रत्नों को जड़ा है। साहित्य के क्षेत्र में आदि कवि वाल्मीकि, रामधारी सिंह दिनकर, फणीश्वर नाथ रेणु हो या कला के क्षेत्र में बिस्मिल्लाह खान, शारदा सिन्हा, नवोदित गायिका मैथिली ठाकुर तथा अभिनय के क्षेत्र में बात करें तो अशोक कुमार, मनोज बाजपेई, सुशांत सिंह राजपूत तथा पंकज त्रिपाठी आदि।
बिहार का ऐसा ही एक नाम पद्मश्री श्रीमती जगदंबा देवी का है। इनका नाम बहुत कम लोगों ने ही सुना होगा। जगदंबा देवी का नाम मधुबनी पेंटिंग के लिए जाना जाता है। इनको 1970 में राष्ट्रीय पुरस्कार तथा 1975 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। जगदंबा देवी साल 1975 में पद्मश्री से सम्मानित होने वाली पहली भारतीय महिला कलाकार हैं। इनकी कला (मधुबनी पेंटिंग) की खास बात यह है कि इनके बनाए चित्रों में सामाजिक, धार्मिक, प्राकृतिक भावनाओं को प्रधानता से उकेरा गया है। इनकी कृतियों में- डोली, गजलक्ष्मी, राधा कृष्ण, अर्धनारीश्वर आदि सुप्रसिद्ध हैं।
इन्होंने हर तरह के चित्रों को बनाया तथा विविध रंगों से सजाया, किंतु चटख लाल रंग इनका पसंदीदा रंग था। इनकी पेंटिंग के ज्यादातर चित्रों में तीखी नाक और बड़ी-बड़ी आंखों तथा सिर से लेकर गर्दन तक त्रिकोणीय आकृति ही इनकी विशेषता थी। मधुबनी पेंटिंग विश्व प्रसिद्ध है किन्तु जगदंबा देवी का नाम अनसुना ही रह गया।
8 जुलाई 1984 को जगदंबा देवी ने 83 वर्ष की अवस्था में इस संसार को अलविदा कहा, किन्तु आज भी बिहार की सांस्कृतिक धरोहरों में जगदंबा देवी अपनी कलाकृतियों के माध्यम से जीवित हैं।
विडंबना यह है कि जगदंबा देवी जैसे अनेकों रत्न हमारे देश में जन्मे, किन्तु इन अनमोल रत्नों की चमक धूमिल सी हो गई है। आवश्यकता है तो इन दमकते रत्नों को धूल से निकालकर दुनिया के सामने इनकी असली चमक दिखाने की।
अंत में ऐसी महान कलाकार को उनकी पुण्यतिथि पर शत शत नमन। बिहार तथा हमारा देश आपकी मधुबनी पेंटिंग के लिए सदैव ऋणी रहेगा।
(पुण्यतिथि विशेष)
(आवरण चित्र जगदंबा देवी की मधुबनी पेटिंग)