मुक्तक- एक
रूठती धरा को मनाने को, आओ कुछ मनुहार करें,
धरती को फूलों से भर दें,आओ पश्चाताप करें।
धरती पर है सब कुछ सुंदर, सुंदरता का मोल करें,
मानवता को जागृत करके, अपनी धरा गुलजार करें ।
मुक्तक- दो
त्राहि-त्राहि की इस धरती को, नये सूर्य की किरण मिले,
नैतिकता की फसलें बोएं, साहस की अब राह मिले।
डर है भयावह पल जीवन का, डर से जीवन रुक जाता है,
मनोबल मजबूत करें तो, जीवन का रुख बदल जाता है।
विद्या भंडारी
कोलकाता (पश्चिम बंगाल)
(यह इनकी मौलिक रचना है)
(आवरण चित्र- शिप्रा तिवारी)