अमर शहीदों की धरती को नमन करो
बलिदानों का बीज भूमि में वपन करो।
करो प्रतिज्ञा तुम इसके सम्मान की
वह रण छंगी वाना तुम भी वरण करो।।
यह परंपरा है आजस्त्र पुरखों वाली
यह गाथा है बलिदानों अमरों वाली।
नई चेतना इसी गर्भ से जन्मेगी
गीतों की अंतरध्वनि है वीरों वाली।
अमर शहीदों की धरती को नमन करो।
वह रण छंगी वाना तुम भी वरण करो।।
इस रेखा को अमिट बनाए रखना होगा
श्रद्धा का विश्वास बनाए रखना होगा।
भारत भविष्य के खातिर हम को भी
सीने में यह आग जलाए रखना होगा।।
अमर शहीदों की धरती को नमन करो।
वह रण छंगी वाना तुम भी वरण करो।।
शत्रु अभी भी घात लगाए बैठा है
चतुर शिकारी जाल बिछाए बैठा है।
सावधान रहना होगा हमको हर पल
आतंकी संजाल बिछाए बैठा है।।
अमर शहीदों की धरती को नमन करो।
वह रण छंगी वाना तुम भी वरण करो।।
आगत की पुकार हमको सुननी होगी
हर पीड़ा की धार हमें सहनी होगी।
हमें विश्व की अगुवाई भी करनी है
राम कहानी दुनिया से कहनी है।।
अमर शहीदों की धरती को नमन करो।
बलिदानों का बीज भूमि में वपन करो।।
ज्योति नारायण
हैदराबाद (तेलंगाना)
(यह इनकी मौलिक रचना है)
(आवरण चित्र- श्वेता श्रीवास्तव)