फेंका कंकर ताल में,
टूटा जल का मौन।
लगी पूछने हर लहर,
तट पर आया कौन।
अंतस में शतदल खिले,
गाये मन ने गीत।
सौरभ बिखरा प्रेम का,
मिला मुझे मनमीत।
फिर से हैं बेचैन ये,
कज्जल पूरित नैन।
दिन का नहीं सुकून है,
नहीं रात का चैन।
बरसीं बूँदे प्रेम की,
भीग रहा हर पोर।
मुरली धुन पर नाचता,
राधा का मन मोर।
मत जा ऐसे छोड़कर,
रे कान्हा चितचोर।
निष्ठुर! रुक जा तोड़ मत,
यह प्रियता की डोर।
ज्योति नारायण
हैदराबाद (तेलंगाना)
(यह इनकी मौलिक रचना है)