एक परी मेरे मन में सोती भी है, रोती भी है।
और उम्र सपनों की गठरी, ढोती भी है, खोती भी है।।
मन का मेरे हाल ना पूछो, हाल हुआ बेहाल ना पूछो,
लहर-लहर लहराती नदियाँ, हैं कितनी उत्ताल न पूछो।
जीवन के तटबंधों तक आ, मुझको वही भिगोती भी है।
एक परी मेरे मन में, सोती भी है, रोती भी है।।
नींद न आती अब आँखों में, फूल नहीं खिलते शाखों में।
उड़ूँ खुले आकाश में मैं भी, शक्ति शेष नहीं पाँखों में।
ढलती उम्र, सयानी पीड़ा, बीज अश्रु के बोती भी है।
एक परी मेरे मन में, सोती भी है, रोती भी है।।
अपने हिस्से क्या कुछ पाया, रिश्तों को फिर-फिर दुहराया।
थमे नहीं हैं मेरे आँसू, काल चक्र जब-जब मुस्काया।
रीते मन की सूखी नदियाँ, हरदम मुझे डुबोती भी हैं।
एक परी मेरे मन में, सोती भी है, रोती भी है।।
ज्योति नारायण
हैदराबाद (तेलंगाना)
(यह इनकी मौलिक रचना है)