कब चाहे मैंने
महल चौबारे,
कब चाहा
हीरे-पन्नों का बोझ,
कब चाहा
मखमली गद्दों सा जीवन।
चाहा था तो
केवल दो बूँद प्यार
मेरे आँसुओं के खारेपन का
स्वाद बदलने के लिए
चुटकी भर मिश्री के बोल।
माँगा था
एक सुगंध भरा फूल,
बगीचा नहीं।
विद्या भंडारी
कोलकाता (पश्चिम बंगाल)
(यह इनकी मौलिक रचना है)
(आवरण चित्र- वैष्णवी तिवारी)