कविता कब से लिखना आरंभ किया, स्वयं को ही पता नहीं। बचपन में कोटेशन लिखने की आदत थी। कुछ भी मन में आया, डायरी में नोट करती थी। खुश होती या क्रोधित होती, तो भी लिखती थी। कम उम्र में शादी होने पर गृहस्थी का जुआ कन्धे पर आने पर स्वयं पर कभी ध्यान नहीं रहा, जैसा कि हर स्त्री के साथ होता है। तब भी थोड़ा-बहुत लिखा करती थी। समय के प्रवाह के संग बहती रही। पूरे परिवार में, बच्चों में एवं मित्रों की सब से ज्यादा प्रिय एवं चहेती रही। फिर भी कुछ ऐसा अन्दर था, जो मैं खुश रहते हुए भी रोज श्रीमान जी से पूछा करती थी- ह्वेयर इज ज्योति, श्रीमान जी? बहुत-बहुत अच्छे हैं, फिर भी समझ नहीं पाये। पहले मैं बेटी थी, पत्नी बनी, माँ बनी, लेकिन ज्योति कहाँ थी?
मेरी शादी की 25वीं वर्षगाँठ पर मेरी बेटी एकता नारायण ने चुपके से मेरी डायरी से दो कविताएँ ‘मन’ और ‘नारी’ उतार कर हैदराबाद के डेली हिन्दी मिलाप में दे दिया और आग्रह कर उसी दिन प्रकाशित करने को कहा। वह कविता व्याख्या और एक स्त्री के स्केच के साथ उसी दिन प्रकाशित हुई थी।
दरअसल मेरी बेटी ही जबरदस्ती साहित्य की बाहरी दुनिया में मुझे लेकर आयी। वो मेरी माँ है। पहली बार मंच पर जब मैं कविता पढ़ रही थी तो सभा में मेरी माँ, मेरी बेटी, मेरी एक साल की नातिन ताली बजा रही थी। चार पीढ़ियाँ एक साथ थीं।
फिर तो पंखों ने जो उड़ान भरी है, वह हौसला अब तक थमा नहीं। मेरे पिताजी मेरा एक भजन गा-गा कर रोज पूजा किया करते थे। इससे बड़ी सफलता और इससे बड़ा आशीर्वाद मेरे लिए और क्या हो सकता है। उन्होंने कहा था, बेटा तुम्हारी ख्याति भगवान के आगे जलती हुई अगरबत्ती की खुशबू की तरह फैलैगी। शायद उन्हीं का ये आशीष है कि महान विद्वत प्रतिष्ठित साहित्यकारों और कवियों के आगे मेरी रचनाएँ पहुँचती हैं। मैं बस गुनगुनाती हूँ और लिखती हूँ।
मुझ से कोई मात्रा, बहर, रदीफ, काफिया के बारे में पूछेगा, तो मैं नहीं बता पाऊँगी। बस लिखना अच्छा लगता है, लिखती रहूँगी। वह गलत है या सही है, ये बुद्धिजीवी लोगों का तर्क-वितर्क है। मेरे तो मनोभाव शब्द रूप गढ़ते हैं। मेरा यह संसार बड़ा ही अलौकिक है, जहाँ सिर्फ मैं होती हूँ और कोई नहीं। अब, लाँघ दी देहरी, ओढ़ ली बदरी, मैं गगन के तले भीगती ही रही। भाषा, व्याकरण, नियम, मात्रा, शिल्प से परे, त्रुटियों सहित मैं अपनी रचनाओं में उपस्थित हूँ। शुभचिंतकों का आशीष व सहयोग मिलता रहे, मेरी लेखनी को शक्ति मिलती रहे, यही माँ शारदे से प्रार्थना है।
ज्योति नारायण
(ज्योति नारायण संगीत में स्नातक हैं, योग शिक्षिका हैं, समाज सेवा भी करती हैं। इन सबके बीच स्वतंत्र लेखन करती हैं। कई प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं। इनके पाँच काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं- प्रेम ज्योति का सूरज, चेतना ज्योति, ज्योति कलश, ज्योति सागर, शब्द ज्योति। काव्य संग्रह ‘शब्द ज्योति’ का अंग्रेजी अनुवाद इथियोपिया सिटी के अरबामिंच यूनिर्वसिटी के प्रो. गोपाल शर्मा ने किया है। अंतरराष्ट्रीय पत्रिका कालजयी की सहसंपादिका हैं, हिचकी पत्रिका की सलाहकार हैं। महादेवी वर्मा सम्मान, सुभद्रा कुमारी चौहान स्मृति सम्मान, हिन्दी भाषा भूषण सम्मान सहित कई विशिष्ट सम्मानों से सम्मानित की जा चुकी हैं। वैसे तो इनकी जन्मभूमि बिहार है, लेकिन तेलंगाना इनकी कर्मभूमि है और वहीं रह कर हिन्दी के प्रचार-प्रसार में लगी हुई हैं।)