एक नवल दिनमान चाहिए
गुंजित किरणें, गान चाहिए
तय कर सकूँ मंजिलें अपनी
निर्विरोध अवगान चाहिए
मुझे सीढ़ियाँ ऊँची चढ़नी
फिर भी आसमान चाहिए
पंखों में परवाज का साहस
सपनों की वो उड़ान चाहिए
रखूँ नींव महल की अपनी
लोहे-कंकर ज्ञान चाहिए
सुंदर सा घर मेरा सजता
साजो व सामान चाहिए
तुलसी चौरा हो आंगन में
माँ पल्लू का दान चाहिए
किलकारियाँ गूँजें इस घर में
छौनों का वरदान चाहिए
मीत प्रीत मेरे साथ रहे अब
गुल गुलशन बागान चाहिए
अंजुरी भर-भर प्रेम पुष्प का
मुझ को वह सम्मान चाहिए
बहे न आँसू नदिया बनकर
बस दिल की मुस्कान चाहिए
सीता का वनवास नहीं पर
अर्धनारीश्वर मान चाहिए
ज्योति नारायण
तेलंगाना (हैदराबाद)
(यह इनकी मौलिक रचना है)
(आवरण चित्र- श्वेता श्रीवास्तव)