आज फिर आया था वह
देखो जा छुप रहा है, झुरमुटों में,
कहने पर नहीं सुनता, रोकने पर नहीं रुकता
वह कहाँ मानता है एक भी बात
बताया था मैंने उसे कल रात
ठीक नहीं इस तरह हमारा मिलना
मुझसे मिलने के लिए तुम्हारा दिन भर जलना
हौले से मुस्कुराया था वह।
वही, हाँ वही सूरज,
जिसे सब अपना मानते हैं,
सबके लिए उगता है,
ऐसा सभी जानते हैं।
लेकिन रोज आता है वह,
अपनी सुनहरी किरणों से मुझे जगाने,
मेरे साथ पूरा दिन बिताने,
मुझसे मिलने,
मेरे साथ मुस्कुराने।
कितना हठी है,
नहीं जाता चाहे कोई बुला ले
चाहे कोई कितना भी बहका ले,
वह कहता है,
आता रहेगा यहाँ,
जब तक मैं हूँ इस जहाँ में,
मेरे मरने के बाद भी।
नहीं भूलेगा मुझे वह,
क्योंकि उसके लिए तो,
जिन्दा रहेगी,
मेरी हँसी,
मेरी यादें,
और मैं,
सदियों तक इस फिजा में।
रोज आता है वह
देखो आज फिर आया है।
शुभ्रा तिवारी
गाजीपुर (उत्तर प्रदेश)
(यह इनकी मौलिक रचना है)
(आवरण चित्र- प्रीति पांडेय)