परिन्दों सी उड़ान है जिन्दगी,
हर रोज नया इम्तहान है जिन्दगी।
हर पहलू से इसे पढ़ कर देखो,
एक नया आयाम है जिन्दगी।
दो कदम चल कर रुक गये क्यों,
रोज एक नया मुकाम है जिन्दगी।
यह नफरत की आग फैली है क्यों,
जब मोहब्बत का नाम है जिन्दगी।
मास्क ने छीन ली लबों की मुस्कुराहट,
आँखों से मुस्कुराने का नाम है जिन्दगी।
हर ओर पसरा इतना सन्नाटा है क्यों,
जब कृष्ण की बाँसुरी का तान है जिन्दगी।
मुरझाने से फूलों का अस्तित्व नहीं जाता,
उनमें छिपे बीजों का नाम है जिन्दगी।
शुभ्रा तिवारी
गाजीपुर (उत्तर प्रदेश)
(यह इनकी मौलिक रचना है)
(आवरण चित्र- वैष्णवी तिवारी)