अखिल निखिल विस्मित हुआ, सुन राधा की बात। विस्मित प्रात: दोपहर, विस्मित संध्या- रात।।
कमलनयन के कंठ में, यह बैजंती माल।
मोहित सारी गोपियां, राधा है बेहाल।
अधर मृदुल मुस्कान है, मृदुल सुहावन बैन।
और मृदुल धुन वंशिका, आप मुँद रहे नैन।
गोकुल विरही हो रहा, व्याकुल है बृजधाम।
कण-कण करुण पुकारता, आ भी जाओ श्याम।।
पार्थसारथी ने दिया, गीता का उपदेश।
पढ़कर जीवन में करें, उसका आप निवेश।
ज्योति नारायण
वाह, अति उत्तम।