ककहरे के साथ ही
सीख लिया था,
हर शब्द का महत्व
हर शब्द की सार्थकता
हर शब्द का अपना वज़न
तभी तो वाक्य सीधे
अर्जुन के तीर की तरह
वहीं लगते थे दिल में,
सीख लिए थे
अंदाजे-बयां भी
कि हर सुनने वाला
बेसाख्ता कह उठता,
वाह
इधर कुछ समय से
मातमी शब्दों ने
हजारों शब्दों को
दिखा दी है औकात
क्या बोलूँ? कैसे बोलूँ?
पहाड़ से दुख के आगे
कितने छोटे,
तुच्छ से हो गए हैं, शब्द,
जिसे कहना भी बेमानी है
शब्दों के उतार-चढ़ाव ने
असलियत दिखा दी है
जहाँ, सिर्फ सन्नाटा है
मौन है, रीतापन है
बेबसी है,
आँखों के प्याले
आँसुओं से लबालब,
इनका टपकना ही
शब्द है
नीरवता को तोड़ते हुए
यही शब्द कहते हैं
ॐ शांति
वर्षा रावल
रायपुर (छत्तीसगढ़)
(यह इनकी मौलिक रचना है)
(आवरण चित्र- सत्यम द्विवेदी)