भूल गये हम
भूल गये
भूल गये हम काशी के पवित्र स्नानों को
भूल गये हम घाट पर बैठे नन्हें नादानों को
भूल गये हम काशी को अर्पित वीर बलिदानों को
भूल गये हम विश्वनाथ की प्यारी संतानों को
भूल गये हम
भूल गये
भूल गये हम मेले में मिलते खेल खिलौनों को
भूल गये हम मैडम से मिली नसीहतों को
भूल गये हम माँ के बनाये पकवानों को
भूल गये हम घाटों की मस्ती के अरमानों को
भूल गये हम
भूल गये
भूल गये हम दादी के शहद से भरे गानों को
भूल गये हम बापू से मिलते चार-चार आनों को
भूल गये हम साथ दिखने वाले उन सारे तारों को
भूल गये हम
भूल गये
बचपन के अफसानों को।
(“बच्चों का कोना” के लिए यह कविता भेजी है वैष्णवी तिवारी ने)
(यह इनकी मौलिक रचना है)
(आवरण चित्र- श्वेता श्रीवास्तव)
Amazing and fantabulous