लोगों से मिलना
घूमना-टहलना
बाहर निकलना
मना हो गया
किसी के भी साथ
हँसना-बोलना
और किसी के साथ बैठना मना हो गया
जो ना माना इन बंदिशों को
वो हँसता-बोलता इंसान
दुनिया से फना हो गया
ऐसे करो ना, वैसे करो ना
यही तो
कायदा-ए-कोरोना हो गया
जो न माना इन बंदिशों को….
पहले कहते थे कि
बार-बार हाथ धोने से
लक्ष्मी नहीं आतीं
अब कहते हैं
बार-बार हाथ धोने से
यमराज नहीं आते
कलयुग का कहर
अब घना हो गया
जो न माना इन बंदिशों को….
ऐसी महामारी आयी
जिंदगी में हमारे
काजू-बादाम से महँगा
प्याज-नीबू और चना
हो गया
जो न माना इन बंदिशों को….
काढ़े और गिलोय के
रस्मोरिवाज में
आज दमदार
आक्सीजन, पेड़, पत्ती
और तना हो गया
जो न माना इन बंदिशों को….
क्या करें अब ?
कैसे समय को बितायें?
तो खोये रहें पुरानी स्मृति में
क्योंकि
वर्तमान और भविष्य से
मन अब अनमना हो गया
जो न माना इन बंदिशों को
वो हँसता-बोलता इंसान
दुनिया से फना हो गया
स्मृति
(वाराणसी, उत्तर प्रदेश)
(यह इनकी मौलिक और अप्रकाशित रचना है)
(आवरण चित्र- श्वेता श्रीवास्तव)
Keep it up… Awesome creation.