सूनापन, तन्हाई और डर देखा हमने
माँ के बाद सिसकता वो घर देखा हमने
जैसे पत्थर में भी हमने रब देखा है
वैसे इंसां में भी पत्थर देखा हमने
इक जुगनू भेजा था हमने आसमान में
मगर सितारा उसे समझकर देखा हमने
गर दो चंदा होते तो फिर कैसा लगता
छत पर उनको आज बुलाकर देखा हमने
झूठे वादे करना भी कितना आसां है
बात से अपनी आज मुकरकर देखा हमने
बीच सफ़र में छोड़ गया था हमें हमसफ़र
रस्ते भर पीछे मुड़ मुड़कर देखा हमने
फिर बोले “सरकारी की तैयारी कर लो”
जब बाबा को ग़ज़ल सुनाकर देखा हमने
सिर्फ़ तुम्हारी ख़ुशबू ही ख़ुशबू है जानाँ
जाने कितने इत्र बदलकर देखा हमने
“सहर” पेट तो केवल रोटी से भरता है
शर्म, ख़ौफ़, कसमें सब खाकर देखा हमने
ऋचा चौधरी “सहर”
भोपाल (मध्य प्रदेश)
(यह इनकी मौलिक रचना है)
(आवरण चित्र- श्वेता श्रीवास्तव)