आज शिक्षक दिवस के अवसर पर सभी शिक्षक-शिक्षिकाओं को सादर नमन है। आज के परिवेश में शिक्षा के क्षेत्र में अनेक तरह के बदलाव देखने को मिल रहे हैं। जहाँ शिक्षा में नयी-नयी तकनीकों का प्रयोग दिख रहा है, वहीं नयी शिक्षा नीतियों और पद्धतियों का भी समावेश परिलक्षित हो रहा है। जहाँ पढ़ने और पढ़ाने के तरीके बदल रहे हैं, वही अनुशासन, शिक्षण विधियाँ, शिक्षण प्रणाली सब कुछ बदल रहा है, यहाँ तक कि आज शिक्षक दिवस पर शिक्षकों के प्रति आभार व्यक्त करने का तरीका भी बदल रहा है।
आज विद्यार्थी फोन पर व्हाट्सएप आदि के माध्यम से कुछ भारी-भरकम पंक्तियों को अपने शिक्षक तक फॉरवर्ड कर रहे हैं जैसे गुरु गोविंद दोऊ खड़े, गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु। कुछ ऐसी पंक्तियाँ जिनमें गुरु की महिमा का बखान हो, हम एक-दूसरे को वही संदेश भेज रहे हैं, लेकिन क्या उन शब्दों को कहीं और से प्राप्त कर कहीं भी भेजना- यही हमारे अपने शिक्षकों के प्रति आभार हैं? क्या यही हमारा कर्तव्य है अपने गुरुओं के प्रति? क्या उन पंक्तियों या श्लोकों में अपना भी कुछ है? लेशमात्र भी हम अपने गुरु के प्रति समर्पित हैं? ये तो ठीक वैसे ही हुआ जैसे कागज के फूल हम एक दूसरे को भेज रहे हैं, उसमें ना कोई सुगंध है ना कोई आकर्षण है, सिर्फ भेज रहे हैं| ऐसे संदेशों से हम अपने गुरु के प्रति निष्ठा और अपने कर्तव्यों को सही मायनों में निभा रहे हैं? इस विषय पर विचार करेंगे तो आप यही उत्तर पायेंगे कि ऐसा कुछ भी नहीं है।
जो शिक्षक जीवन पथ पर चलना सिखाते हैं हमारे चारित्रिक, नैतिक, सामाजिक जीवन का विकास करते हैं, उनके लिए हमारे पास न तो समय है और न ही उनके प्रति श्रद्धा, फिर ऐसे शिक्षक दिवस मनाने की क्या आवश्यकता है? मेरी इस बात से अधिकांश लोग सहमत होंगे कि जैसा शिक्षक और विद्यार्थी का संबंध हमारे समय में था, आज वैसा नहीं है। शिक्षक हमसे पुत्रवत (अपने संतान के समान) स्नेह रखते थे, वहीं हम विद्यार्थी उन्हें माता-पिता तुल्य आदर देते थे। आज सब कुछ समाप्त हो चुका है। आज कक्षा चौथी-पाँचवी के बच्चे अपने गुरु का मूल्यांकन करते हैं, उनके विषय में बातें करते हैं कि हमारे शिक्षक में अनुभव की कमी है या उस विद्यालय में कम वेतन था, इसलिए यहाँ पर आ गये हैं या अपने गुरु को देखते ही रास्ता बदल लेते हैं। इस तरह की बातें क्या आज के विद्यार्थियों को शोभा देती हैं?
यह तो एक छोटा सा उदाहरण है। इस तरह की अनेक बातें आज शिक्षक और शिक्षार्थी दोनों के संबंधों को कमजोर कर रही हैं। हमें आवश्यकता है अपने बच्चों में अपने गुरु के प्रति स्नेह और आदर के भाव को जगाने की। यदि हम इतना भी कर पाये तो हम सही मायनों में अपने शिक्षकों के प्रति कुछ आभार व्यक्त कर पायेंगे।
तो अपनी माँ रूपी शिक्षिका को फिर एक अवसर दें और अपने बच्चों के मन में गुरु के प्रति कर्तव्य आदर आदि भाव को जागृत करें। और केवल शिक्षक दिवस पर ही नहीं बल्कि हमेशा अपने शिक्षकों के प्रति निष्ठावान रहें। अपने गुरुओं को आदर और सम्मान दें। तभी वास्तविक रूप में हम शिक्षक दिवस मना पायेंगे।
मेरे जीवन में भी बहुत सारे शिक्षकों-शिक्षिकाओं का योगदान रहा, तभी मैं आज बेहतर तरीके से जीवन-यापन कर रही हूँ। आज शिक्षक दिवस के अवसर पर मैं अपने सभी गुरुजनों को हृदय से प्रणाम करती हूँ तथा आभार व्यक्त करती हूँ। मेरे जीवन में विशेष स्थान रखने वाली मेरी पहली शिक्षिका मेरी माँ श्रीमती आभा दुबे, श्रीमती सविता पांडेय, श्रीमती उषा श्रीवास्तव एवं सुश्री राजलक्ष्मी वर्मा जी को मैं सादर नमन करती हूँ जिन्होंने मेरे जीवन को एक नयी दिशा दी तथा जीवन में कुछ कर गुजरने का साहस दिया। मैं आप सबकी ऋणी हूँ और हमेशा रहूँगी। एक बार फिर से आप सभी को शिक्षक दिवस की ढेर सारी शुभकामनाएँ।
स्मृति
वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
(आवरण चित्र में स्मृति अपनी प्रिय शिक्षिका के साथ)
(आवरण चित्र स्मृति से साभार)
गुरवे नम: