अँधेरे से उजाले की ओर, सूरज की किरणों सा, दीपक की भाँति राह दिखाते
अज्ञान से ज्ञान की ओर, जीवन की नय्या पार कराते, किनारे पर पहुँचाते
निराशा से आशा की ओर, प्रेरणा के उत्तुंग शिखर पर आसनस्थ कराते
नकारात्मकता से सकारात्मकता की ओर, सूर्य के किरण की भाँति तेज भरते
जिन्दगी के हर कदम पर नया सिखाकर भविष्य उज्ज्वल कराते
असाध्य से साध्य की ओर अग्रसर कर हमारी पहचान बनाते
जीवन का फलसफा सामने रख मार्गस्थ कराते
पढ़ना लिखना सिखाकर वर्तमान की तकलीफें दूर कराते
गुरु शिष्य का रिश्ता मानो धरती अम्बर का मेल
जीवन के हर मोड़ पर हमें मिलते हैं गुरु किसी न किसी रूप में
अद्भुत, अतुलनीय, अविस्मरणीय होते हैं गुरु
उनका मोल नहीं सारे जहाँ में
मन में अंकित कर छवि उनकी, आज कदम हैं मजबूत हमारे, भविष्य सुकर उनसे
गागर में सागर न समाएँ यदि करूँ मैं बखान तुम्हारे, बखान तुम्हारे
प्रा मनीषा विकास नाडगौडा
बेलगाम (कर्नाटक)
(यह इनकी मौलिक रचना है)
(आवरण चित्र- श्वेता श्रीवास्तव)