मैं खुश हूँ कि मैं नारी हूँ
दुर्गा, शक्ति, शिवा, धात्री
कहलाने की मैं ही तो
अधिकारी हूँ।
चाहे जितनी दो यातनाएँ, प्रताड़नाएँ
या बाँधो जंजीरों में
मैं इन सबसे कब हारी हूँ?
मैं खुश हूँ कि मैं…………….
प्रेम, दया, करुणा धर अपने मन में,
काँटों से घिरी हुई,
मैं एक फुलवारी हूँ
मैं खुश हूँ कि मैं………….
गर्भ में अपने रख कर
सींचती मैं नवजीवन को
मैं तो ममता और वात्सल्य की मारी हूँ
मैं खुश हूँ कि मैं…………
मैं ही तो गार्गी, अंबिका
मैं ही तो बन भागीरथी
भागीरथ को तारी हूँ
मैं खुश हूँ कि मैं…………..
मैं ही सबला, कर्म-योगिनी
साध्वी, वनिता और सहचरी
मैं नहीं कभी बेचारी हूँ
मैं खुश हूँ कि मैं नारी हूँ।
स्मृति
वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
(यह इनकी मौलिक रचना है)