कौतूहल से देखते हैं
आने जाने वाले
मोहित होते, सौंदर्य से
चमकती काया
आकर्षण में बाँध लेती
अनायास ….
अँधेरे ने अँधेरे में रखा उसे
कि आँखों में गज़ब का
सम्मोहन होता है…
कि देखना उसका
अधिकार है
कि नहीं वो गांधारी
जो बाँध ले
आँखों में पट्टियाँ ….
क्योंकि ये खूबसूरत
चमकीली देह की मछलियाँ
जन्म से अंधी है
उनकी दुनिया में भी तो
अँधेरा ही है
सो पहले ही अनुमानित
आँखों की जगह
बिंदु है प्रतीक
जन्म से ही….
जो कभी नहीं खुली
गोया कि उन्हें मालूम हो
अपनी ज़िंदगी की फितरत
कि उन्हें
देखने समझने की
ज़रूरत ही क्या है….
सृष्टि की व्यापकता
से क्या लेना देना,
जब सारी सृष्टि
उसके लिए
बस्तर की
कोटमसर गुफा है….
और वो
उसमे जगमगाने वाली
अंधी मछली…..
वर्षा रावल
रायपुर (छत्तीसगढ़)
(यह इनकी मौलिक रचना है)