भटक रही है वो भी
जैसे भटकती हैं
अतृप्त आत्माएँ.…
आत्माओं का भटकना
कुछ ने सुना कुछ ने
अनुभूत किया है
पर निष्कर्ष यही कि
भटकती हैं
अतृप्त आत्माएँ…..
अतृप्ति क्या है?
कोई इच्छा कोई आकांक्षा
कोई चाह कोई कामना
जो पूरी हो न सकी…….
अतृप्ति बोझ है सीने का
दिल में लगा शूल है कोई,
जिसे साथ लिए चलना
कष्टकर है अत्यन्त,
जीने के लिए भी
मरने के बाद भी…..
इसीलिए वो भी भटकती है
जैसे भटकती हैं
अतृप्त आत्माएँ….
हम आत्मा से कम,
अतृप्ति से ज्यादा डरते हैं
तभी तो बोतल में बन्द कर
गाड़ देते हैं अतृप्ति के साथ
ही उस आत्मा को
जो कभी नहीं मरती
अतृप्ति वहाँ भी जिंदा रहती है….
या पूजा पाठ, कर्मकांड करके
भगा देना चाहते हैं हम उसे
अपने से दूर, बहुत दूर….
अतृप्ति का इलाज नहीं करते
अपने से दूर कर देते हैं,
चाहे मृत हो या
मृतप्राय जीवित………
वर्षा रावल
रायपुर (छत्तीसगढ़)
(यह इनकी मौलिक रचना है)
(आवरण चित्र- वैष्णवी तिवारी)