हमें कर्मशील सदा रहना है
बस नदी सा बहते रहना है
पथ में आये शूल या पत्थर
हमें आगे सदा ही बढ़ना है
अनजाने पथ पर भी राही
सोच समझ कर चलना है
रात जले जो दीप देहरी
सुबह उसे तो बुझना है
आज हैं साँसें, कल न होंगी
एक दिन इसने छलना है
उम्र की गिनती दरख़्त जैसी
जीवन बोझ को सहना है
यादों की बारात चले तो
सपनों में ही उसे रखना है
जीवन को जरा रचके देखो
पीछे फिर कहाँ मुड़ना है
प्यार हुआ इकरार हुआ तो
शोर भला क्यों करना है
हंँसी खुशी गम ईश्वर आगे
बस खामोशी से कहना है
ज्योति नारायण
हैदराबाद (तेलंगाना)
(यह इनकी मौलिक रचना है)
(आवरण चित्र- श्वेता श्रीवास्तव)