नर्म-नर्म गोले सी
पहली बार आँखें खोलीं
दुनिया में आगमन
अभी ही हुआ था…
तुम्हारी नई-नई माँ
पीड़ा में भी
मुस्कुरा रही थी
मिठास से लबरेज़
जो थी…
तुमने जैसे ही रोने को
मुँह बनाया
दो बूँद
शहद घुल गया
तुम्हारे मुँह में…
और इस
मिठास को
चाटने की कला
तुम्हें आ गई…
थोड़ी बड़ी हुई नहीं कि
तुम्हारी माँ,
करुणा से भीग गई
पर मुस्कुराना पड़ा उसे….
तुम्हारे कानों में
नन्हीं-नन्हीं बालियाँ
जो लटकने वाली थीं
तुम माँ को
कसकर पकड़ी थी
पर बुक्का फाड़कर
रो पड़ी …
माँ ने रुमाल खोला
छोटी सी गुड़ की डली
तुम्हारे मुँह तक
पहुँच चुकी थी …
ये नुस्खा सदियों से
कारगर था
हर इंजेक्शन के बाद
हर गिरने के बाद
हर चोट के बाद
हर दर्द के बाद…..
मुँह में चॉकलेट होती
जो बताती रही कि
तुम्हारी माँ ने भी
इन्हीं मीठी चीजों से
मुस्कान बनाये रखी है…..
किसी के गिराने पर
गिरती है रोज़
रोज़ चोट लगती है उसे
रोज़ दर्द में होती है….
पर बचपन के गुड़ ने
अदृश्य होकर भी
मुस्कुराना सिखा दिया है
हर हाल में …
बस उसी परम्परा का
निर्वाह हो रहा है
तुम्हारे लिए भी ….
समय सही नहीं
सो तुम्हें बता दूँ
चुपके से…
मत आना किसी
चॉकलेट, मिठाई की
लालच में….
जता देना कि
तुम्हारी परवरिश
परम्परागत तरीके से
नहीं हुई ….
गिर पड़ो तो कहना
चोट लगे तो कहना
दर्द सहना नहीं
कहना…
उस वक़्त कोई
मिठास मुँह में
मत घोलना……..
वर्षा रावल
रायपुर (छत्तीसगढ़)
(यह इनकी मौलिक रचना है)