मित्र मिलन की भावना, जागे मन में आज।
बचपन के दिन याद कर, सुख का हो आगाज।।
कदम कदम पर साथ चल, किए नेक सब काम।
सदा दोस्त हमदर्द बन, हरते विपत तमाम।।
श्रेष्ठ मित्र पहचान कर, करना उससे प्रीत।
निश्छलता के भाव से, बन जाना मनमीत।।
छोड़ो मत यूँ साथ को, बना रहे ये नात।
जीवन में प्रिय मित्र से, मिले मधुर सौगात।।
मित्र बिना लगते सदा, रिश्ते सब बेजान।
कहे रमा ये सर्वदा, करें मित्र सम्मान।।
दोहा- छंद
डॉ. मनोरमा चंद्रा “रमा”
रायपुर (छत्तीसगढ़)
(यह इनकी मौलिक रचना है)