फिल्मों के शौकीन लोगों में सत्यजीत रे का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। सत्यजीत रे सिनेमा जगत में किस ऊँचाई पर खड़े हैं, उसको समझने के लिए जापानी फिल्मकार अकीरा कुरासोवा का एक कथन ही पर्याप्त है। कुरासोवा कहते हैं, यदि आपने सत्यजीत रे की फिल्में नहीं देखी हैं, तो इसका मतलब आप इस दुनिया में सूरज या चाँद देखे बिना ही रह रहे हैं। साल 1955 से निर्देशक के रूप में सत्यजीत रे की जो यात्रा आरंभ हुई, वह 23 अप्रैल 1992 को उनकी मौत के साथ ही खत्म हुई। इन छत्तीस वर्षों में उन्होंने छत्तीस फिल्मों का निर्देशन किया। इन फिल्मों में रे ने कई मजबूत नारी चरित्रों को गढ़ा, जो नारी मनोविज्ञान की उनकी बेहतरीन समझ का प्रतीक हैं।
फिल्म चारूलता की चारू विवाहिता, लेकिन अकेली है। उसका पति भूपति अपने समाचार पत्र के कारण उसे समय नहीं दे पाता। वह साहित्य और साहित्यकारों पर चर्चा करने में सक्षम है। वह कला में निपुण है। फिल्म के आरम्भिक चरण के एक दृश्य में वह पति को कढ़ाई किया हुआ रूमाल देती है और ऐसा ही चप्पल देने का वादा करती है। फिल्म के आरंभिक दृश्य में उसके अकेलेपन को रे ने लम्बे चले मूक क्रम के माध्यम से बखूबी दिखाया है। वह अपने पति की बुआ के लड़के अमल की ओर आकर्षित हो जाती है। जैसे-2 वह उससे जुड़ती है, वैसे-वैसे भूपति से दूर होती जाती है। फिल्म के अंतिम चरण में अमल उसे छोड़ कर दूर चला जाता है, परंतु वह उसे भूल नहीं पाती। फिल्म के एक दृश्य में वह उसके पत्र को हाथ में लिए बिस्तर पर गिर पड़ती है और कहती है, ‘तुम क्यों चले गये? मैंने क्या अपराध किया था? मैंने क्या किया था कि तुम बिना एक शब्द कहे ही चले गये?’
नारी मनोविज्ञान के चित्रण के लिहाज से यह उनकी सर्वोत्तम फिल्मों में से एक है। अब हम इस फिल्म के दो सिक्वेंस की चर्चा करेंगे ताकि इस चित्रण को समझ सकें। एक सिक्वेंस में जब अमल अपना लेख छपने का समाचार पहले मंदा को देता है, तो चारू अमल के चेहरे के सामने अपने कमरे का दरवाजा झटके से बंद कर लेती है। अमल उसे मनाने का प्रयास करता है। दरवाजा खटखटाया जाता है, चारू सोचती है, अमल है। वह चिल्लाकर व्यस्त होने की बात करती है परंतु दरवाजे पर भूपति है। वह स्वयं पर नियंत्रण करती है और दरवाजा बंद रखने का झूठा कारण बताती है। इस सिक्वेंस में रे ने चारू की मनःस्थिति का बारीकी से चित्रण किया है। पहले आत्मसम्मान को ठेस, फिर बुरी तरह खीझना, फिर स्वयं को संभाल न पाने के कारण रो पड़ना, पुनः स्वयं को सँभालना, पति से झूठ बोलना और इस तरह अभिनय करना जैसे कि कुछ हुआ ही न हो।
एक अन्य सिक्वेंस में चारू का लेख छप गया है। वह पत्रिका हाथ में लेती है, उससे अमल के सिर पर चपत लगाती है, वह अमल को वे चप्पलें दे देती है जिन्हें वह पहले भूपति के लिए बना रही थी। वह मंदा से पानदान छीनकर अमल के लिए स्वयं पान बनाती है। अमल के हाथ से पत्रिका छीनकर फेंक देती है। परंतु यह सब तो तूफान के आने से ठीक पहले की शांति है। वह अमल की कमीज को पकड़कर फूट-फूट कर रो पड़ती है। वह कुछ क्षणों बाद स्वयं को नियंत्रित करती है और कमरे से बाहर निकल जाती है। इस सिक्वेंस के जरिये रे ने चारू के मन के कई तहों की बातें कह दी हैं, यह कि चारू के लिए लिखना महत्वपूर्ण नहीं है, अमल महत्वपूर्ण है और उसके सामने स्वयं को साबित करना महत्वपूर्ण है, यह कि वह अमल पर अपना और केवल अपना अधिकार मानती है, यह कि वह भूपति से दूर हो गयी है। वह अमल के प्रति अपने प्रेम को प्रकट कर देती है। इस प्रेम के कारण उसके मन में कुछ खेद है, लेकिन वह प्रेम के कारण मजबूर है।
इस प्रकार सत्यजीत रे ने चारूलता नामक चरित्र के मानसिक झंझावात को सफलता से चित्रित कर यह साबित कर दिया है कि वह नारी मनोविज्ञान के कुशल चितेरे हैं। सत्यजीत रे की यही विशेषता उन्हें अन्य निर्देशकों से अलग और खास पहचान देती है।
प्रज्ञा चौबे
(यह इनकी मौलिक रचना है)
(आवरण चित्र https://satyajitray.org/ से साभार)