सतह में रहकर
समुद्र की गहराई
नापना उतना ही
मुश्किल होता है
जितना कि
आकाश की
परिधि नापना
पर फिर भी हम
कर दे देते हैं
मूल्यांकन
अपने चश्मे से
देखकर
दे देते हैं
परिणाम
पूरा भरोसा
दिलाकर
सागर की गहराई को
डरावनी शक्ल में,
या
आकाश को
भयानक रूप में
भले ही फर्क नहीं पड़ेगा
तलहटी को
न ही आकाश को
मूल्यांकन से
पर फर्क पड़ेगा
उन्हें जो सतह पर
ही चहलकदमी
कर रहे हैं
क्योंकि वे भी वही
देख पाएंगे
जहाँ तक दृष्टि है
लेकिन,
अनबूझा रह जाएगा
विशाल आकाश
विस्तृत गहराई
सही मूल्यांकन के
अभाव में।
वर्षा रावल
रायपुर (छतीसगढ़)
(यह इनकी मौलिक रचना है)
(आवरण चित्र- वैष्णवी तिवारी)