नीलिमा मिश्रा की रचना- रीत
कैसी “रीत” है दुनिया की, कि संग संग रहते हुये भी, मिलते नहीं कभी नदिया, झील और सागर के दोनों किनारे, चाँद और सूरज की , युगल जोड़ी है संग संग, फिर भी इनका मिलन है दुश्वारे, राधा कृष्ण एक होते हुये भी, ना मिल पाये कभी , जगत रीत के मारे, राम और सिया […]
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