फूल कलियाँ छोड़ कर तलवार पर मैंने लिखा
आज अपनी जीत अपनी हार पर मैंने लिखा।
आप बस मेरे लब-ओ-रुख़्सार पर लिखते रहे
आपके अच्छे बुरे व्यवहार पर मैंने लिखा।
देखने आयी थी सागर की हसीं लहरों को मैं
दिख गया जब डूबता मझधार पर मैंने लिखा।
चार दीवारी में जबसे क़ैद है ये ज़िन्दगी
आपका ही नाम हर दीवार पर मैंने लिखा।
माँ पे लिखकर यूँ लगा मैंने लिखा भगवान पर
बाप पे लिखकर लगा संसार पर मैंने लिखा।
ऋचा चौधरी “सहर”
(भोपाल, मध्य प्रदेश)
(यह इनकी मौलिक रचना है)
(आवरण चित्र- वैष्णवी तिवारी)