उलझन नारी जीवन की

कैसी है ये उलझन, भागा-भागा फिरे है मन कर्तव्यों के जीवन में, कहीं नहीं मिले है चैन एक को पकड़ूँ, दूजा खोऊँ तकिया गीला, नित सिसकूँ रोऊँ किससे कहूँ मैं दिल की बात अपने भी सोचें, नहीं मुझमें जज़्बात। बँट गई ज़िन्दगी मेरी टुकड़ों की खुशियाँ मेरी हर कोई सही अपनी दृष्टि में गलत हूँ […]

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