खुशी-खुशी कर दो विदा, कहे दिसंबर मास।
स्वागत कर नववर्ष का, मन में ले उल्लास।।
पात पुराने जब झरे, आते तब नव पात।
वृक्ष दुखी होता नहीं, छोड़ अंग के जात।।
बात दिसंबर की खरी, जीवन का है सार।
चक्र कालका घूमता, मिलना अगली बार।।
यह जग एक सराय है, महीने सब मेहमान।
पूर्ण अवधि अब हो गई, करता मैं प्रस्थान ।।
स्वागत जब नव वर्ष का, करो खुशी हिय धार।
अवलोकन गत वर्ष का, करलेना इक बार।।
गलती जो मुझसे हुई, कहीं हुआ जो झोल।
कर देना मुझ को क्षमा, अपने मन को खोल।।
मिलकर रहना साथ सब, देता शिक्षा नेक।
भिन्न-भिन्न फूलों सजी, जैसे माला एक।।
देश-भक्ति नस-नस बहे, जले प्रेम के दीप।
मुक्ता निपजे नेह के, उर आंगन के सीप।।
हर्षलता दुधोड़िया हैदराबाद