दुख क्या है?
अपमान क्या है?
दर्द क्या है?
कुछ शब्द.. जिन्हें रख दिया था नुकीला बना कर
आँच में तपा कर.. खूब गर्म
कुछ चुभा, कुछ निशान बने जलने के
टीस.. सिसकारी बन उभरी..
बस अब ये करना
बटोर लेना सारे शब्द
एक थैली में रख मिला देना अच्छी तरह
खेलना उनसे हाऊजी की तरह
थैली में हाथ डाल कर निकालना
एक-एक शब्द
जमाते जाना ज़िंदगी के टिकिट पर …
काटते जाना दर्द, टीस, चुभन
कई शब्द निकलते जायेंगे….
अंततः बन ही जायेगा रास्ता
जीत न भी हो भले ही
हार भी नहीं होगी …
बस ये तो हो ही जायेगा
कि सारे शब्द जरूर
रखा जायेंगे…….
अपने-अपने स्थान पर..…
मधु सक्सेना
रायपुर (छत्तीसगढ़)
(यह इनकी मौलिक रचना है)